रसास्वादन
पाठ १. नवनिर्माण
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 'नवनिर्माण' कविता का १०० से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए। (जुलाई '२२ - '२३)
उत्तर :
(१) रचनाकार : त्रिलोचन (मूलनाम - वासुदेव सिंह)।
(२) पसंद की पंक्तियाँ: कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
जिसको मंजिल का पता रहता है,
पथ के संकट को वही सहता है,
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ
अपना इतिहास वही कहता है।
(३) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात कही गई है कि एक बार अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेने के बाद मनुष्य को हर समय उसको पूरा करने के काम में जी-जान से लग जाना चाहिए। फिर मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, उन्हें सहते हुए निरंतर आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन ऐसे व्यक्ति को सफलता मिलकर ही रहती है। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका गुणगान करते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं।
४) कविता की केंद्रीय कल्पना :प्रस्तुत कविता में संघर्ष करने, अत्याचार विषमता तथा निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया गया है तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवता की स्थापना की बात कही गई है।
प्र. २. अन्याय, अत्याचार से दीन-दुखियों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका बत बन जाना ही बलवान व्यक्तियों के बल का सही उपयोग है। इस कथन के आधार पर 'नवनिर्माण' कविता का १०० से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि त्रिलोचन द्वारा चतुष्पदी छंद में रचित कविता 'नवनिर्माण' का मूलतत्त्व जीवन में संघर्ष करना बताया गया है। हमारे समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, विषमता आदि का बोलबाला है। कवि इन बुराइयों पर काबू पाने के लिए लोगों को बल और साहस एकत्र करने का आवाहन करते हैं। यह सर्व विदित है कि ये सारी बुराइयाँ कुछ लोगों द्वारा अपने शारीरिक एवं आर्थिक बल का दुरुपयोग करने के कारण पनपती हैं। इसलिए इन पर विजय पाने का मार्ग भी बल का प्रयोग ही है। यहाँ बल प्रयोग से कवि का आशय किसी के विरुद्ध बल का अनावश्यक प्रयोग करने से न होकर सताए हुए, दबाए हुए बलहीन लोगों का बल बन कर दिखाने से है। इसी बात को कवि अपनी कविता में बिना किसी लाग लपेट के सीधे-सादे सरल शब्दों में इस प्रकार कहते हैं -
बल नहीं होता सताने के लिए,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए।
बल मिला है, तो बल बनो सबके,
उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए।
कवि ने इस कविता में अपनी बात कहने के लिए न कहीं रस-अलंकारवाली श्रृंगारिक भाषा का प्रयोग किया है और न ही उन्हें अपनी बात कहने के लिए दुरूहता के मायाजाल में ही फँसना पड़ा है। कविता के शाब्दिक शरीर के रूप में सरल शब्दों की अभिधा शक्ति तथा कविता का प्रसाद गुण कविता में व्यक्त भावों को सरलतापूर्वक आत्मसात करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
पाठ ३ सच हम नहीं; सच तुम नहीं
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 'सच हम नहीं; सच तुम नहीं" कविता का १०० से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(१) रचना का शीर्षक: सच हम नहीं; सच तुम नहीं।
(२) रचनाकार : डॉ. जगदीश गुप्त।
(३) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में निरंतर आगे बढ़ते रहने, संघर्ष करते रहने और मार्ग में आने वाली रुकावटों की परवाह न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। यही इस कविता की केंद्रीय कल्पना है।
(४) रस-अलंकार :
(५) प्रतीक विधान : इस कविता में संघर्ष का मार्ग त्याग कर नत हो जाने यानी किसी की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले को मृतक के समान हो जाना कहा गया है। कवि ने इस तरह के मृत व्यक्ति के लिए 'डाल से झड़े हुए फूल' का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(६) कल्पना : जीवन में दृढ़तापूर्वक संघर्ष का मार्ग अपनाना और निराश हुए बिना उस पर अडिग रहना ही जीवन की एकमात्र सच्चाई है।
(७) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
अपने हृदय का सत्य, अपने आप हमको खोजना ।
अपने नयन का नीर, अपने आप हमको पोंछना।
इन पंक्तियों से अपनी समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए बिना किसी की सहायता की उम्मीद किए स्वयं कमर कस कर तैयार होने की प्रेरणा मिलती है।
(८) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इस पंक्ति में यह बताया है कि संघर्ष में असफलता हाथ लगे, तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आप अपनी अाँखों के आँसू पोंछकर फिर से हिम्मत के साथ संघर्ष में जुट जाना है।
आँसुओ को पौछ कर अपनी क्षमताओं को पहचानना ही जीवन है' इस सच्चाई को समझाते हुए 'सच हम नहीं; सच तुम नहीं' पावल का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर : डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा लिखित कविता 'सच हम नहीं; सच तुम नहीं है। जीवन में निरंतर संघर्ष करते रहने का आह्वान किया गया है।
कवि पानी-सी बहने वाली सीधी-सादी जिंदगी का विरोध करते हुए संघर्षपूर्ण जीक जीने की बात करते हैं। वे कहते हैं, जो जहाँ भी हो, उसे संघर्ष करते रहना चाहिए।
संघर्ष में मिली असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी हालत में हमें किसी के सहयोग की आशा नहीं करनी है। हमें अपने आप में खुद हिम्मत लानी होगी और अपनी क्षमता को पहचानकर नए सिरे से संघर्ष करना होगा। मन में यह विश्वास रखकर काम करना होगा कि हर राही को भटकने के बाद दिशा मिलती हो है और उसका प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा। उसे भी दिशा मिलकर रहेगी।
कवि ने सीधे-सादे शब्दों में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कही है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने 'अपने नयन का नीर पोंछने' शब्द समूह के द्वारा हताशा से अपने आप को उबार कर स्वयं में नई शक्ति पैदा करने तथा 'आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है कहीं! से यह कहने का प्रयास किया है कि भगवान तुम्हारी सहायता के लिए नहीं आने वाले हैं और धरती के लोग तुम्हारे दुख से द्रवित नहीं होने वाले हैं। इसलिए तुम स्वयं अपने आप को सांत्वना दो और नए जोश के साथ आगे बढ़ो। तुम अपने लक्ष्य पर पहुँचने में अवश्य कामयाब होगे।
पाठ ५ (अ) गुरुबानी
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर १०० से १२० शब्दों में 'गुरुबानी' के पदों का रसास्वादन कीजिए। (मार्च '२३)
उत्तर :
(१) रचनाकार : गुरु नानक ।
(२) पसंद की पंक्तियाँ : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
नानक गुरु न चेतनी मनि आपणै सुचेत ।
छूटे तिल बुआड़ जिउ सुजे अंदरि खेत।।
खेतै अंदरि छुटिआ कहु नानक सउ नाह।
फलीअहि फुलीअहि बपुड़े भी तन विचि सुआह।।
(३) कविता पसंद आने का कारण : गुरु नानक ने इन पंक्तियों में यह बताया है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो गुरु को महत्त्व नहीं देते और अपने आप को ही ज्ञानी मान बैठते हैं। गुरु नानक जी ऐसे लोगों की तुलना उस तिल के पौधे से करते हैं, जो किसी निर्जन स्थान पर अपने आप उग आता है और उसको खाद-पानी देने बाला कोई भी नहीं होता। इसलिए उस पौधे का विकास नहीं हो पाता। ऐसे पौधे में फूल भी लगते हैं और फली भी लगती है, पर फली के अंदर दाने नहीं पड़ते, उसमें गंदगी और राख ही होती है। वैसी ही हालत बिना गुरु के मनुष्य की होती है। ऐसे लोगों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।
(४) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत दोहों-पदों में गुरु के महत्त्व, ईश्वर की महिमा तथा प्रभु का नाम स्मरण करने से ईश्वर प्राप्ति की बात कही गई है।
प्र. २. 'गुरु निष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है।' इस कथन के आधार पर १०० से १२० शब्दों में 'गुरुबानी' कविता का रसास्वादन कीजिए। (सितंबर '२१; जुलाई '२२)
उत्तर :
गुरु नानक का कहना है कि बिना गुरु के मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता। मनुष्य के अंतःकरण में अनेक प्रकार के मनोविकार होते हैं, जिनके वशीभूत होने के कारण उसे वास्तविकता के दर्शन नहीं होते। वह अहंकार में डूबा रहता है और उसमें गलत-सही का विवेक नहीं रह जाता। ये मनोविकार दूर होते हैं गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर। यदि गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनमें पूरा विश्वास हो तो मनुष्य के अंतःकरण के इन विकारों को दूर होने में समय नहीं लगता। मन के विकार दूर हो जाने पर मनुष्य में सबको समान दृष्टि से देखने की भावना उत्पन्न हो जाती है। उसके लिए कोई बड़ा या छोटा अथवा ऊँच-नीच नहीं रह जाता। उसे मनुष्य में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। उसके लिए ईश्वर की भक्ति भी सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इस बात को सरल ढंग से कहा है।
इस तरह गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति-भावना से मनुष्य श्रेष्ठ बन जाता है।
पाठ ५ (आ) वृंद के दोहे
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर १०० से १२० शब्दों में 'वृंद के दोहे' का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(१) रचना का शीर्षक: वृंद के दोहे।
(२) रचनाकार : वृंद ( पूरा नाम - वृंदावनदास)।
(३) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत दोहों में कई नीतिपरक बातों की सीख दी गई है। इस तरह कविता की केंद्रीय कल्पना नीतिपरक बातें हैं।
(४) रस-अलंकार : अद्भुत रस।
(५) प्रतीक विधान : कवि वृंद के दोहों में समझाने के लिए कई प्रतीकों का सुंदर उपयोग किया है। कविता में प्रयुक्त इन प्रतीकों में नयना, सौर (चादर), काठ की हाँड़ी, वायस, गरुड़, गागरि, पाथर, कोकिल, अंबा, निबौली, कुल्हाड़ी तथा बिरवान आदि प्रतीकों का समावेश है।
(६) कल्पना : अनेक नीतिपरक उपयोगी बातें दोहों का विषय।
(७) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार है:
सरसुति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात ।
ज्यों खरचे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात ।।
इन पंक्तियों से ज्ञान के भंडार की विपुलता तथा उसके विशेष गुण की महत्ता की जानकारी होती है।
(८) कविता पसंद आने का कारण : संसार में कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जो किसी को देने से कम न होती हो। लेकिन ज्ञान का भंडार निराला है; इस ज्ञान को जितना खर्च किया (बाँटा) जाए, उतना ही अधिक बढ़ता है। इतना ही नहीं, यदि इसे दूसरों को न दिया जाए और अपने ही पास जमा करके रहने दिया जाए, तो यह नष्ट हो जाता है।
प्र. २. जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिचित कराने वाले वृंद जी के दोहों का १०० से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए। (मार्च '२२)
उत्तर :
कवि वृंद ने अपने लोकप्रिय छंद 'दोहों' के माध्यम से सीधे-सादे ढंग से जीवन के अनुभवों से परिचित कराया है तथा जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाया है।
कवि व्यावहारिक ज्ञान देते हुए कहते हैं कि मनुष्य को अपनी आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखकर किसी काम की शुरुआत करनी चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है। इसी तरह व्यापार करने वालों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा है कि वे व्यापार में कुल-कपट का सहारा न लें। इससे वे अपना ही नुकसान करेंगे। वे कहते हैं कि किसी का सहारा मिलने के भरोसे मनुष्य को निष्क्रिय नहीं बैठ जाना चाहिए। मनुष्य को अपना काम तो करते ही रहना चाहिए। इसी तरह से वे कुटिल व्यक्तियों के मुँह * लगने की उपयोगी सलाह देते हैं।
वे कहते हैं कि अपने आप को बड़ा बताने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। जिसके अंदर जैसा गुण होता है, उसे वैसा ही लाभ मिलता है। कोयल को मधुर आम मिलता है और कौवे को कड़वी निबौली। वे कहते हैं कि बच्चे के अच्छे-बुरे होने के लक्षण पालने में ही दिखाई दे जाते हैं और पौधे के पत्तों को देखकर उसकी प्रगति का पता चल जाता है।
कवि कहते हैं कि संसार की किसी भी चीज को खर्च करने पर उसमें कमी आती है, पर ज्ञान के भंडार को जितना खर्च किया जाता है, वह उतना ही बढ़ता जाता है।
कवि ने विविध प्रतीकों की उपमाओं के द्वारा अपनी बात को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। दोहों का प्रसाद गुण उनकी बात को स्पष्ट करने में सहायक होता है।
पाठ ७ पेड़ होने का अर्थ
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 'पेड़ होने का अर्थ' कविता का १०० से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए। (सितंबर '२१; मार्च '२२)
उत्तर :
(१) रचनाकार : डॉ. मुकेश गौतम।
(२) पसंद की पंक्तियाँ: कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
राह में गिरा देता है फूल
और करता है इशारा उसे आगे बढ़ने का।
(३) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत कविता में कवि ने पेड़ के माध्यम से मनुष्य को मानवता तथा परोपकार जैसे मानवोचित गुणों की प्रेरणा दी है।
(४) कविता की केंद्रीय कल्पना : सब कुछ दूसरों को देकर जीवन की सार्थकता सिद्ध करना। पेड़ मनुष्य का बहुत बड़ा शिक्षक है। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है। वह उसे समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और उसने मानव को संस्कारशील बनाया है।
प्र. २. 'पेड़ हौसला है, पेड़ दाता है', इस कथन के आधार पर १०० में १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए।
उत्तर : पेड होने का अर्थ कविता में कवि डॉ. मुकेश गौतम पेड के माध्यम से मरण को मानवता, परोपकार आदि मानवोचित गुणों की प्रेरणा दे रहे हैं। मनुष्य जरा-सी प्रतिकूल कार्य में मनचाही सफलता न मिलने पर हौसला है। पेड़ भयंकर आँधी-तूफान का सामना करता है, घायल होकर टेढ़ा हो जाता है, परंतु क अपना हौसला नहीं छोड़ता। पेड़ के हौसले के कारण शाखों में स्थित घोंसले में चिड़िय के चहचहाते छोटे-छोटे बच्चे सारी रात भयंकर तूफान चलते रहने के बाद भी सुरक्षित रहते हैं। पेड़ बहुत बड़ा दाता है। पेड़ का कोई भी भाग अनुपयोगी नहीं होता। पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने वालों, उसे काटने वालों से भी कभी बदला लेने का नहीं सोचता। वह तो जीवन भर देता ही रहता है। पेड़ हमें स्वास्थ्यवर्धक वायु प्रदान करता है। पेड़ रोगों के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियाँ देता है। पेड़ सभी को पुष्पों की सौगात देता है। पेड़ कवि को कागज, कलम तथा स्याही, पेड़ वैद्य और हकीम को विभिन्न रोगों के लिए दवाएँ तथा शासन और प्रशासन के लोगों को कुरसी, मेज और आसन देता है। पेड़ संर के समान है, जो दूसरों को केवल देते हैं, किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते। पेड़ बिना किसी स्वार्थ के जीवन भर देता ही रहता है।
पाठ ८ चुनिंदा शेर
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर १०० से १२० शब्दों में शेरें का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(१) रचना का शीर्षक: चुनिंदा शेर।
(२) रचनाकार : कैलाश सेंगर।
(३) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कवि की रचनाआ बी प्रभावशीलता, परेशानियों से घबराए बिना उनका सामना करना, सुखद भविष्य के हाने देखना, उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करना, आँसुओं को हँसी से छिपा लेना, त्याग औ तपस्या के महत्त्व, मनुष्य की सहन शक्ति की सीमा, विद्रोह, मेहनतकश इन्सान के दिलोदिमाग में चलने वाली निराशा और हताशा की आँधियों का उल्लेख किया गया है। साथ ही यह इच्छा व्यक्त की गई है कि लोग नदियों को प्रदषित न करें, सभी लोगों। के उचित ढंग से भरण-पोषण की व्यवस्था हो और हर तरह से समाज का भला हो।
(४) रस-अलंकार :
(५) प्रतीक विधान : 'चट्टानी रातों को जुगनू से वह सँवारा करती है' पंक्तियों में आशा की एक किरण के लिए जुगनू का प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है।
(६) कल्पना : सामाजिक विषमता, अव्यवस्था तथा आम आदमियों की विवशताओं को अभिव्यक्त किया गया है।
(७) पसंद की पंक्तियाँ : इसमें लाशें भी मिला करती हैं, तुम जरा देख-भाल तो लेते। इसको माँ कहके पूजनेवालो, इस नदी को खंगाल तो लेते। नदियों को माँ की तरह पूजने वालों के लिए इन पंक्तियों में नदियों को साफ-सुथरा रखने का आँख खोलने वाला संदेश दिया गया है।
(८) कविता पसंद आने का कारण : इन पंक्तियों में कवि जल प्रदूषण रोकने की प्रेरणा दे रहे हैं। नदी मानव सभ्यता के लिए जीवनदायिनी का काम करती है। हमें नदी को स्वच्छ रखना चाहिए। कूड़ा-करकट, रसायन आदि नदी में नहीं डालने चाहिए।
प्र. २. कवि की भावुकता और संवेदनशीलता को समझते हुए १०० से १२० शब्दों में 'चुनिंदा शेर' का रसास्वादन कीजिए। (मार्च २३)
उत्तर : कवि अपनी जिंदगी में आई परेशानियों से प्रभावित हुए बिना उनका इस प्रकार सामना करते रहे कि वहीं से मानो उजाले फूट पड़े। सारी परेशानियाँ इस प्रकार समाप्त हो गईं मानो कभी थीं ही नहीं। कवि नित्य नए सपने देखता था, जागती आँखों के सपने। वह नहीं जानता था कि उसके सपनों में, उसके विचारों में क्रांति का बीज छिपा है। आज हर मनुष्य अपने जीवन की विसंगतियों से इस कदर त्रस्त है कि वह नहीं चाहता कि दूसरा कोई भी अपने आँसुओं से उसका कंधा भिगोए। अतः हमें अपने चेहरे पर एक मुखौटा लगाकर अपने आँसुओं को हँसी से छिपा लेना चाहिए। ईश्वर फकीरों, साधुओं और समाज की भलाई की इच्छा रखने वाले लोगों को ऐसी शक्ति प्रदान करता है कि उनके मुख से निकले आशीर्वाद सच होने लगते हैं। हर मनुष्य की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। प्रतिकूल परिस्थितियों, असफलताओं और अन्याय को सहन करने की शक्ति जिस दिन समाप्त हो जाएगी, वह दिन बस विद्रोह का दिन होगा। जीवन में निरंतर मिलती निराशाओं के कारण आँखों से आँसू बहते रहते हैं। एक मेहनतकश इन्सान जेठ मास की कड़कती हुई धूप में नंगे पाँव सड़क पर चला जा रहा है। उसके दिलोदिमाग में निराशा और हताशा की आँधियाँ चल रही है। मनुष्य की साँसें निश्चित हैं। कवि को ऐसा महसूस होता है मानो उनकी साँसों पर उनका कोई अधिकार नहीं है। कल भूख और बीमारी के कारण जिस मजदूर की साँसे बंद हो गई, वह अनपढ़ था। पर वह रोज अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं को मानो कित्ताम में लिखता रहता था।
पाठ १२: लोकगीत
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 'लोकगीत' पाठ का १00 से १२० शब्दों में रसास्वादन कीजिए ।
उत्तर :
(१) रचना का शीर्षक: लोकगीत।
(२) रचनाकार :
(३) कविता की केंद्रीय कल्पना : सावन का महीना और बसंत ऋतु दोनों हो प्रकृति में नयनामिराम परिवर्तन करके मानव मन को उल्लसित कर देती हैं। सृष्टि के रोम-रोम, कण-कण में सुरम्यता, सजीवता और सृजनात्मकता के दर्शन होते हैं।
(४) रस-अलंकार : 'अइसन मन भइल, जइसे इंद्रधनुष के फूल रे।' (उपमा अलंकार)।
(५) प्रतीक विधान : कविता में खेत, वन तथा तन-मन रंग जाने के लिए इंद्रधनुष (के सातों रंगों) का प्रतीक रूप में उपयोग किया गया है।
(६) कल्पना : बसंत ऋतु एवं सावन के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का मनोहारी चित्रण।
(७) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार है:
खेत बन रँग गइल
तन मन रँग गइल
अइसन मन भइल
जइसे इंद्रधनुष के फूल रे,
सुनु रे सखिया। आइल...
इन पंक्तियों में प्रकृति तरह-तरह के रंगों से इस तरह रंग गई है कि उसके लिए 'इंद्रधनुष का ही उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें सभी सातों रंगों का समावेश होता है।
(८) कविता पसंद आने का कारण : इन पंक्तियों में बसंत ऋतु के आने पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का मानव तन-मन पर पड़ने वाले प्रभावों का चित्रात्मक वर्णन किया गया है। बसंत के आगमन से चराचर जैसे उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं।'
प्र. २. 'बसंत और सावन ऋतु जीवन के सौंदर्य का अनुभव कराती हैं।' इस कथन के आधार पर 'लोकगीत' कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर : बसंत ऋतु आते ही हर तरफ फूल महकने लगते हैं। सरसों फूल जाती है भौर पूरी धरती हरियाली की चादर ओढ़कर खिल उठती है। कली-कली फूल बनकर मुस्कुराने लगती है। जिसके कारण तन-मन भी प्रसन्न हो जाते हैं। इस ऋतु के आने से खेत, वन, बाग-बगीचे सब हरे-भरे हो जाते हैं, इंद्रधनुष के विभिन्न रंगों के समान भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे फूल खिल उठते हैं। भौंरों के दल प्रसन्न होकर फूलों पर मँडराने लगते हैं। काजल लगी कजरारी आँखों में सपने मुस्कुराने लगते हैं और कंठ से मीठे गीत फूटने लगते हैं। बाग-बगीचों में बहार आने के साथ ही यौवन भी अँगड़ाइयाँ | लेने लगता है। मधुर-मस्त बयार चलने के कारण सबके तन-मन प्रसन्न हो जाते हैं। | इसी प्रकार मनभावन सावन आने पर बादल घिर-घिरकर गरजने लगते हैं, मेघ रिमझिम - | रिमझिम करके बरसते रहते हैं। मानो, प्यार बरसाकर हृदय का तार-तार रंग रहे हों। हर व्यक्ति का मन गुलाब की तरह खिल जाता है। दादुर, मोर और पपीहे बोलकर सबके हृदय को प्रफुल्लित करते रहते हैं। अँधियारी रात में जुगनू जगमग- जगमग करते हुए इधर से उधर डोलकर सबका मन लुभाते हैं। डाल-डाल महक उठती है। सरोवर और सरिताएँ जल से भरकर उमड़ पड़ती हैं। सभी मनुष्यों के हृदय आनंदित हो उठते हैं।
पाठ १३ विशेष अध्ययन हेतु : कनुप्रिया
प्र. १. निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर १०० से १२० शब्दों में 'कनुप्रिया' कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(१) रचना का शीर्षक: कनुप्रिया।
(२) रचनाकार : डॉ. धर्मवीर भारती।
(३) कविता की केंद्रीय कल्पना : इस कविता में राधा और कृष्ण के तन्मयता के क्षणों के परिप्रेक्ष्य में कृष्ण को महाभारत युद्ध के महानायक के रूप में तौला गया है। राधा कृष्ण के वर्तमान रूप से चकित है। वह उनके नायकत्व रूप से अपरिचित है। उसे तो कृष्ण अपनी तन्मयता के क्षणों में केवल प्रणय की बातें करते दिखाई देते हैं।
(४) रस-अलंकार : - -
(५) प्रतीक विधान : राधा कनु को संबोधित करते हुए कहती है कि मेरे प्रेम को तुमने साध्य न मानकर साधन माना है। इस लीला क्षेत्र से युद्ध क्षेत्र तक की दूरी तय करने के लिए तुमने मुझे ही सेतु बना दिया। यहाँ लीला क्षेत्र और युद्ध क्षेत्र को जोड़ने के लिए सेतु जैसे प्रतीक का प्रयोग किया गया है।
(६) कल्पना : प्रस्तुत काव्य-रचना में राधा और कृष्ण के प्रेम और महाभारत के युद्ध में कृष्ण की भूमिका को अवचेतन मनवाली राधा के दृष्टिकोण से चित्रित किया गया है।
(७) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : दुख क्यों करती है पगली/क्या हुआ जो/ कनु के वर्तमान अपने/तेरे उन तन्मय क्षणों की कथा से/अनभिज्ञ हैं/उदास क्यों होती है नासमझ/कि इस भीड़-भाड़ में/तू और तेरा प्यार नितांत अपरिचित छूट गए हैं, गर्व कर बावरी / कौन है जिसके महान प्रिय की/अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हों?
इन पंक्तियों में राधा को अवचेतन मनवाली राधा सांत्वना देती है।
(८) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इन पंक्तियों में राधा के अवचेतन मन में बैठी राधा के द्वारा चेतनावस्था में स्थित राधा को यह सांत्वना दिलाई है कि यदि कृष्ण युद्ध की हड़बड़ाहट में तुमसे और तुम्हारे प्यार से अपरिचित होकर तुमसे दूर चले गए हैं तो तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए। तुम्हें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए क्योंकि किसके महान प्रेमी के पास अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं। केवल तुम्हारे प्रेमी के पास ही हैं न।
प्र. २. 'कनुप्रिया में लेखक ने राधा के मन की व्यथा का सुंदर चित्रण किया है' इस कथन के आधार पर १०० से १२० शब्दों में कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
डॉ. धर्मवीर भारती लिखित काव्य 'कनुप्रिया' आधुनिक मूल्योंवाला नया काव्य है। महाभारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई इस कृति में कनुप्रिया यानी राधा के मानसिक संघर्ष के प्रसंग व्यक्त हुए हैं। कवि ने राधा के माध्यम से कृष्ण को संबोधित करते हुए उनसे कई प्रश्न पुछवाए और उनके जवाब भी राधा से दिलवाए हैं। इस काव्य में कई प्रसंग बहुत सुंदर ढंग से पिरोए गए हैं। अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनास्थित राधा से कहती है कि 'वह आम्र की डाल जिसका सहारा लेकर कृष्ण वंशी बजाया करते थे अब काट डाली जाएगी, क्योंकि वह कृष्ण के सेनापतियों के रथों की ध्वजाओं में अटकती है।' या 'चारों दिशाओं से, उत्तर को उड़ उड़कर जाते हुए, गिद्धों को क्या तुम बुलाते हो (जैसे बुलाते थे भटकी हुई गायों को)'। इन पंक्तियों में कवि ने राधा के मन की व्यथा व्यक्त की है। कवि ने नई कविता के मुक्त छंदों में सीधे-सादे सरल शब्दों में राधा के मन की बात कही है। प्रस्तुत कविता में प्रसाद गुण की प्रमुखता है और समूचे काव्य में अतुकांत छंदों का प्रयोग किया गया है, जो नई कविता की अपनी विशेषता है।
1. | Choose the Correct Option | 5 Marks | |
2 | Complete the Correction | 5 Marks | |
3 | Give Economic Term | 5 Marks | |
4 | Find the Odd Word | 5 Marks | |
5 | Complete the following Statements | 5 Marks | |
6 | Assertion and Reasoning Questions | 5 Marks | |
7 | Identify and Explain the Concepts | 6 Marks | |
8 | Distinguish Between | 6 Marks | |
9 | Answer in Brief | 12 Marks | |
10 | State with Reasons, Do you Agree/ Disagree | 12 Marks | |
11 | Table, Diagram, Passage Based Questions | 8 Marks | |
12 | Answer in Detail | 16 Marks |
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