रसास्वादन : हिंदी युवाभरती- कक्षा ग्यारवीं (Class 11th)

हिंदी युवाभरती- कक्षा ग्यारवीं (Class 11th) 

रसास्वादन


 प्रेरणा

1. आधुनिक जीवन शैली के कारण निर्मित समस्याओं से जूझने की प्रेरणा इन त्रिवेणियों से मिलती है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: प्रेरणा

(ii) रचनाकार : त्रिपुरारि

(iii) केंद्रीय कल्पना : अर्थ प्रधान एवं अतिव्यस्त आधुनिक जीवन शैली अपनाने के कारण आज मनुष्य न चाहते हुए भी अकेला पड़ गया है। तनाव में जी रहा है। मानसिक असंतुलन, चिंता, उदासी, सूनापन आदि से चारों ओर से घिरा है। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आगे निकलने की होड़ लगी हैं और उसके रिश्ते पीछे छूट रहे हैं। जिंदगी की आपाधापी में जुटे माता-पिता के बच्चों को स्नेह भी टुकड़ों में मिलता है।

जीवन की इन समस्याओं को उजागर करते हुए त्रिपुरारि जी ने अपनी त्रिवेणियों में माँ के ममत्व और पिता की गरिमा को भी व्यक्त किया है। जीवन में आगे निकलने की होड़ में चोट खाकर गिरने पर भी सँभलकर फिर से चलने की, आगे बढ़ने की सलाह दी है।

(iv) रस-अलंकार : तीन पंक्तियों के मुक्त छंद में इस कविता की त्रिवेणियों लिखी हुई हैं। (v) प्रतीक विधान : जीवन के प्रति सकारात्मकता का विधान है पेड़ में बीज और बीज में पेड़ छुपा है। यहाँ बीज हमारी भावनाओं का प्रतीक है और उसे आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता फूलता है।

(vi) कल्पना : खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखने की कल्पना हमें तनाव, कुंठा से मुक्ति देगी।

(vii) पंसद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : 'चाहे कितनी ही मुश्किलें आएँ छोड़ना मत उम्मीद का दामन नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे।' यह त्रिवेणी मुझे पसंद है क्योंकि सचमुच कठिनाइयों से घबराकर निराश व्यक्ति जीते जी मर जाता है। हर अंधेरी काली रात के बाद सुबह उजाला लेकर अवश्य आता है। ठीक इसी तरह दख के बाद सख का आना निश्चित है इस उम्मीद के साथ जीना चाहिए। यही जीवन के 

(vii) पंसद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :

'चाहे कितनी ही मुश्किलें आएँ

छोड़ना मत उम्मीद का दामन

नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे।' 

यह त्रिवेणी मुझे पसंद है क्योंकि सचमुच कठिनाइयों से घबराकर निराश व्यक्ति जीते जी मर जाता है। हर अंधेरी काली रात के बाद सुबह उजाला लेकर अवश्य आता है। ठीक इसी तरह दुख के बाद सुख का आना निश्चित है इस उम्मीद के साथ जीना चाहिए। यही जीवन के प्रति सकारात्मकता है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण:  सामयिक स्थितियाँ, रिश्ते और जीवन के प्रति सकारात्मकता कविता का मुख्य विषय है जो प्रेरणादायी है। त्रिपुरारि जी की ये त्रिवेणियों हमें जीने की कला सिखाती है, इसीलिए मुझे कविता पसंद है।


पंद्रह अगस्त

1. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: पंद्रह अगस्त

(ii) रचनाकार : गिरीजाकुमार माथुर 'पंद्रह अगस्त' कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखा एक गीत है।

(iii) केंद्रीय कल्पना : स्वतंत्रता के पश्चात देश में चारों ओर उल्लास छाया है और साथ ही इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने हेतु सावधान एवं सतर्क रहना जरूरी है यह आह्वान भी है। 

(iv) रस-अलंकार : कविता में वीर रस की निष्पत्ति के साथ साथ लयात्मकता का सुंदर प्रयोग हर अंतरे में स्पष्ट झलकता है। जैसे छोर, हिलोर डोर कोर जैसे शब्दों का प्रयोग हो या दिशाएँ, हवाएँ, सीमाएँ, प्रतिमाएँ या फिर डगर, डर, घर, अमर जैसे शब्दों के प्रयोग से गेयता साध्य हुई है। 'पहरुए सावधान रहना' मुखड़ा हर अंतरे के बाद आया है।

(v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं।

(vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव: 'किंतु आ रही नई जिंदगी यह विश्वास अमर है,जनगंगा में ज्वार लहर तुम प्रवाहमान रहना'

इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण: कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।


भक्ति महिमा

1. ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: भक्ति महिमा

(ii) रचनाकार : संत दादू दयाल

(iii) केंद्रीय कल्पना : इन साखियों में कवि संत दादू दयाल जी ने ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर मन के भीतर ही है। नामस्मरण करने से हमें मोक्ष प्राप्त होगा। वेद-पुराण पढ़ने से जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिलता बल्कि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम होना चाहिए यही कल्पना यहाँ कति ने हमारे सामने रखी है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता नीति और ज्ञानोपदेश देने वाली साखियाँ हैं जो दोहा छंद में लिखी गई हैं।

(v) प्रतीक विधान : ईश्वर भक्ति, नामस्मरण, जीवन और जगत से प्रेम, अहंकार का त्याग करने से मोक्ष मिलेगा यही विधान कवि ने अपने दोहों में किया है।

(vi) कल्पना : संत दादू दयाल जी ने हृदय एक सँकरा महल है, ऐसी कल्पना की है और प्रभु और अहंकार दोनों उसमें एक साथ नहीं रह सकते ऐसा बताया है। अहंकार को त्यागने का संदेश देने के लिए कवि ने यह कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव: इन साखियों में मेरी पसंदीदा साखी है - 

'जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तह नाहीं राम। 

दादू महल बारीक है, वै कूँ नाही ठाम ।।'

साखी का भाव दिल को छू लेता है और अहंकार को त्यागने का संदेश देता है। क्योंकि राम अर्थात ईश्वर और 'मैं' अर्थात अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते। मनुष्य का हृदय एक सॅकरा महल है जहाँ अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर से दूर हो जाता है। अतः अहंकार का त्याग कर के ही मनुष्य प्रभुमय हो सकता है। मनुष्य का बैरी उसका अहंकार है। है जो उसे प्रभु से मिलने नहीं देता। इसीलिए अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण: नीति ज्ञानोपदेश और संसार का व्यावहारिक ज्ञान देने वाली ये साखियाँ हैं जो हमें अहंकार को त्यागकर सभी को एक समान मानने की प्रेरणा देती हैं। इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है। इनकी गेयता भी मुझे अच्छी लगती है।


बाल लीला

1. बाल हठ और वात्सल्य के आधार पर सूर के पदों का रसास्वादन कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: बाल लीला

(ii) रचनाकार : संत सूरदास

(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कविवर्य संत सूरदास जी ने कृष्ण के बाल हठ एवं यशोदा मैया की वात्सल्य मूर्ति को अंकित किया है। प्रथम पद में यशोदा मैया कृष्ण का चाँद पाने का हठ भी पूरा करती है तो द्वितीय पद में यशोदा कृष्ण को कलेवा कराने हेतु दुलारती दिखाई देती है। कृष्ण की पसंद के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन सामने रखकर वह कृष्ण की मनुहार कर रही है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत पद गेय शैली में लिखे गए हैं। इनमें वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है।

(v) प्रतीक विधान: सूरदास स्वयं को माता यशोदा मानते हैं और अपने आराध्य को बालक कृष्ण समझकर कृष्ण के बाल हठ को पूरा कर रहे हैं तथा उन्हें भोजन कराने का प्रयत्न कर रहे हैं।

(vi) कल्पना : प्रथम पद में चाँद को शरीर धारण कर कृष्ण के साथ खेलने की कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :

'जलपुट आनि धरनी पर राख्यों, गहि आन्यौ वह चंद दिखावै। 

सूरदास प्रभु हँसि मुसक्याने, बार-बार दोऊ कर नावै।।

सूरदास जी इस पद में कह रहे हैं कि यशोदा हाथ में पानी का बरतन उठाकर लाई है। वे चंद्रमा से कहती हैं कि, 'तुम शरीर धारण कर आ जाओ।' फिर उन्होंने जल का पात्र भूमि पर रख दिया और कृष्ण से कहा, "देखो मैं वह चंद्रमा पकड लाई हूँ। तब सूरदास के प्रभु कृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे। कितनी सुंदर कल्पना की है यहाँ सूरदास जी ने।

(viii) कविता पसंद आने के कारण: मुझे यह कविता पसंद है, क्योंकि यहाँ वात्सल्य रस के साथ-साथ सूरदास जी का अपने आराध्य के प्रति भक्ति भाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने अपने आराध्य को बालक के रूप में देखा और माता के समान स्नेह देते हुए भक्ति की है। माँ के जैसे ही वे कृष्ण को कहते हैं, "उठिए स्याम कलेऊ की जै।" यही भक्ति की चरम सीमा है।


स्वागत है

1. गिरमिटियों की भावना तथा कवि की संवेदना को समझते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: स्वागत है

(ii) रचनाकार : शाम दानीश्वर

(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कवि ने अंग्रेजों के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों का हृदयविदारक वर्णन किया है। इतिहास की उस लंबी कहानी को जीना मतलब कीचड़ की दलदल में फँस जाना था। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज तक बिछड़े सारे लहूलुहान बंधु अब मॉरिशस में इकट्ठे हो रहे हैं। अब उस कीचड़ में कमल के फूल उगने लगे हैं। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। इन सब बंधु-बाँधवो का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते हैं।

(iv) रस-अलंकार : यह कविता प्रवासी साहित्य है। विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा रचा साहित्य इस श्रेणी में आता है।

शाम दानीश्वर जी मॉरिशस में बसे हिंदी कवि हैं। स्वागत है कविता में कहीं पर भयानक रस "कहीं पुनः दोहरा न दे इतिहास हमारा, इस-उस धरती पर बिखर न जाएँ" तो कहीं पर वीर रस - 'तो स्वर्ग इसे तुम बना जाओ, स्वागत स्वागत स्वागत है।' की निष्पत्ति हुई है।

प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को अपनी विगत दुखद स्मृतियाँ भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

(vi) कल्पना : मॉरिशस की भूमि के लिए नैहर की कल्पना की है क्योंकि इस भूमि पर बिखरे परिजनों का मिलाप होगा। विविध देशों में विखरे हुए बंधुओं का मॉरिशस की भूमि पर स्वागत है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : 'पर दासता पंक में जा गिरे थे कितने युग लगे पंकज बनने में, 'मारीच' से मॉरिशस बनने में, देखो इस पावन भूमि पर बन बांधों का सफल प्रणयन।'

इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं हम अग्रेजों के गुलाम बनकर कीचड़ की दल-दल में जा गिरे थे। कई युग लग गए कीचड़ में कमल खिलने के लिए। कई दिशाओं से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर सफलतापूर्वक ले जाया गया है। गिरमिटियों के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने वाली ये पंक्तियाँ मुझे पसंद हैं।

(viii) कविता पसंद आने के कारण मॉरिशस हिंद महासागर का स्वर्ग है, यह कल्पना गिरमिटियों को सत्य में तबदील करनी है। कवि का गिरमिटियों की सृजनात्मक प्रतिभा पर विश्वास इस कविता में व्यक्त हुआ है।


गजल दोस्ती, मौजूद

1. गजल में निहित जीवन के विविध भावों को आत्मसात करते हुए रसास्वादन कीजिए। उत्तर :

(i) शीर्षक: दोस्ती, मौजूद

(ii) रचनाकार: डॉ. राहत इंदौरी

(iii) केंद्रीय कल्पना डॉ. राहत इंदौरी जी के 'दो कदम और सही' गजल संग्रह से 'दोस्ती' गजल ली गई है जिसमें गजलकार दोस्ती का अर्थ और महत्त्व से हमें परिचित कराते हैं। दूसरी गजल 'मौजूद' गजल संग्रह से संकलित है जो हौसला निर्माण करने वाली, उत्साह दिलाने वाली, सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता को जगाने वाली गजल है। इस गजल में जिंदगी के अलग-अलग रंगों का इजहार खूबसूरती से किया गया है। जीवन में दोस्त हमदर्द, मार्गदर्शक, होता है। एक-दूसरे के मन की बात बिना बोले ही समझ जाते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी होते हैं। जीवन में दोस्त का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता गजल है जिसका हर शेर स्वयंपूर्ण है। नए रदीफ, नई बहर, नए मजमून, नया शिल्प का जादू इन गजलों में बिखरा हुआ है।

(v) प्रतीक विधान : प्रस्तुत गजलों में जिंदगी के अलग-अलग रंगों का खूबसूरत इजहार है। संवेदनशीलता, सकारात्मकता, हौसला और उत्साह जगाने में ये गजलै सफल हुई हैं।

(vi) कल्पना : कवि ने कागजों के बीच की खामोशियाँ पढ़ने की कल्पना की है, जो हमारी संवेदनशीलता को जगाती है। कातिल कागज का पोशाक पहनने वाला व्यक्ति अर्थात स्वार्थी, झूठा और दोगला व्यवहार करने वाला व्यक्ति जिससे हमें सर्तक, सावधान रहने की बात कही है।

(vii) पसंद की पंकितयां तथ प्रभाव

'सूख चुका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर

पानी पीने रोज समंदर आता है।' अर्थात शक्ति क्षीण हो जाने के बाद भी देने का उत्साह कम नहीं हुआ है और जो भीड़ रूपी समुंदर किनारे पर पानी पीने आता है उनको पानी देने का हौसला भी गजलकार रखते हैं। यही है जीवन की सकारात्मकता का इजहार।

(viii) कविता पसंद आने के कारण मुझे इन गजलों की संवेदनशीलता और सकारात्मकता अच्छी लगती है। वर्तमान स्थिति पर कसा व्यंग्य भी मुझे प्रभावित करता है और सावधान

रहने के लिए प्रेरित करता है। गजल की असली कसौटी उसकी प्रभावोत्पादकता होती है जिसमें गजलकार सफल हुए है।


सहर्ष स्वीकारा है


1. प्रस्तुत नई कविता का भाव तथा भाषाई विशेषताओं के आधार पर रसास्वादन कीजिए।

उत्तर :

(i) शीर्षक: सहर्ष स्वीकारा है।

(ii) रचनाकार : गजानन माधव मुक्तिबोध ।।

(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी (दुख, संघर्ष, गरीबी, अभाव, अवसाद) मिलें उसे सानंद स्वीकार करने की बात कही है। प्रकृति को जो कुछ भी प्यारा है वह उसने हमें सौंपा है। इसीलिए जो कुछ भी मिला है या मिलने की संभावना है उसे सहजता से अपनाना चाहिए।

(iv) रस / अलंकार : मुक्त छंद में लिखी गई इस कविता में गरबीली गरीबी, विचार-वैभव में अनुप्रास अलंकार की छटा है।

(v) प्रतीक विधान : अंधकार, अमावस्या निराशा के प्रतीक है।

(vi) कल्पना : 'दिल में क्या झरना है?' पंक्ति में कवि कल्पना करते हैं कि झरने में जैसे चारों तरफ की पहाड़ियों से पानी इकट्ठा होता है और कभी खाली नहीं होता वैसे ही कवि के हृदय में अपनी प्रियतमा के प्रति प्रेम उमड़ता है और बार बार व्यक्त करने पर भी कम नहीं होता।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव: अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।' ये पंक्तियाँ प्रभावी सिद्ध होती हैं क्योंकि जिसे हम प्यार करते हैं उस प्रिय व्यक्ति को जो कुछ भी अच्छा लगता है वह अस्वीकार करना असंभव होता है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण कविता ‌द्वारा हमें जीवन के सुख-दुख, संघर्ष, अवसाद आदि को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है। अपने प्रिय व्यक्ति का प्रभाव अँधेरी गुफाओं में भी सहारा बनता है। उसका स्नेह हमें कभी कमजोर भी बनाता है। भविष्य में अनहोनी हो जाने का डर भी इसीलिए अत्यधिक प्रेम के कारण ही सताता है। कविता के ऐसे भाव दिल को छू जाते हैं।


लघुकथाएँ


1. 'उषा की दीपावली लघुकथा द्वारा प्राप्त संदेश लिखिए।

उत्तर:

'उषा की दीपावली यह श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित एक सुंदर मर्मस्पर्शी लघुकथा है।

इस पाठ की छोटी उषा एक संवेदनशील लड़की है। दीपावली के अवसर पर वह देखती है कि सफाई का काम करने वाला बबन 'नरक चौदस पर जलाए हुए आटे के दीपक कूड़े-कचरे के डिब्बे में न फेंकते हुए अपनी जेब में रख रहा है। बबन इतना गरीब था कि ये दीपक सेंककर खाना चाहता था। ये आटे के दीप जिसे लोग कचरे में फेंकते हैं वे किसी का पेट भरने के भी काम आते हैं। यह सुनकर उषा को तकलीफ होती है।

शादी-ब्याह में लोग प्लेटों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर बाद में बचा हुआ खाना फेंकते हैं। यह दृश्य उषा को याद आया और उषा दीपावली के पकवान बबन को देकर सच्ची खुशी महसूस करती है। इस कहानी से अन्न की बरबादी टालकर बचा खुचा अन्न गरीबों तक पहुँचाने का संदेश मिलता है। देने की खुशी महसूस करने का अनोखा संदेश इस कहानी से मिलता है।


2. मुस्कुराती चोट' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

'मुस्कुराती चोट' एक प्रेरणादायी लघुकथा है। इस कथा का बबलू अभाव में जीता है। 'पिता की बीमारी माँ का संघर्ष देखकर खुद भी घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करता है। किताबें न मिलने से उसकी पढ़ाई रुक गई है। बबूल एक दिन एक घर में रद्दी लेने के लिए जाता है तो उसकी बाल-मजदूरी पर बिना वजह उसके माँ-बाप को दोष देकर मालकिन ताने मारती है।

मालकिन की लड़की जब रद्दी की किताबें उसकी पढ़ाई के लिए मुफ्त में देना चाहती है, तब मालकिन विरोध करती है। किताबें लेकर वह पढ़ाई करेगा इस पर अविश्वास प्रकट करती है। ये बातें बबलू के मन को चोट पहुँचाती हैं। परंतु बाद में जब मालकिन को पता चलता है कि उन किताबों को रद्दी में बेचने के बजाय उसने खुद की पढ़ाई के लिए किताबें अलग रखी हैं तो उसे अपने अपशब्दों पर पछतावा होता है और वह बबलू की आगे की पढ़ाई का सारा खर्चा स्वयं उठाने का निश्चय करती है। इससे बबलू की चोट मुस्कुराहट में परिवर्तित होती है।

दिल की चोट अब खुशी में बदलती है। अतः सुखांत वाली इस लघुकथा को 'मुस्कुराती चोट' यह शीर्षक अत्यंत सार्थक लगता है।


मेरा भला करने वालों से बचाएँ


1. पाठ के आधार पर ग्राहकों की वर्तमान स्थिति का चित्रण कीजिए।

उत्तर :

वर्तमान युग में भला करने वाले लोगों से लेखक बेहद परेशान हैं। हर कोई यह दावा कर रहा है कि, वे लोगों के फायदे के बारे में सोचते हैं। मुफ्त में वस्तु दे रहे हैं। इन सब के लिए विज्ञापनों की भरमार हो रही है। अस्पताल वाले भी हर तरह का इलाज करने के लिए तैयार हैं।

आपका मोटापा कम करने की चिंता जितनी आपको नहीं है, उतनी स्लिमिंग सेंटरवालों को है। आप बेझिझक कोई भी और कितनी भी महंगी वस्तु खरीद सकते हैं। बैंक की ओर से क्रेडिट कार्ड वाला आपको डेबिट कार्ड दे रहा है। आपके स्वास्थ्य की चिंता वॉटर फिल्टर वालों को अधिक है।

योग संस्थान वाले आपको हँसाकर आपके स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं। भारत माँ का सपूत लोगों के हित के लिए सस्ते में मॉल में कपड़े बेच रहा है। 'सेल' फोन वाला मुफ्त में सिम कार्ड बेच रहा है। आज मुफ्त के चक्कर में लोग फँसते हैं।


2. अखबार के दफ्तर से आए दो युवाओं से मिले लेखक के अनुभवों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर :

अखबार के दफ्तर से लेखक से मिलने दो युवा आए थे। उन्होंने लेखक से कहा कि, वे फिल्में


दिखाते हैं. राय पाने के लिए आमंत्रित करेंगे। लेखक को खश होते देखकर उन्होंने फौरन

दिखाते हैं, राय पाने के लिए आमंत्रित करेंगे। लेखक को खुश होते देखकर उन्होंने फौरन अपना काम शुरू कर दिया। जैसे ही लेखक को किसी काम में व्यस्त पाया फौरन उन्होंने लेखक के सामने हस्ताक्षर करने के लिए कागज आगे किए।

कागजातों में क्या लिखा है ये पढ़े बगैर ही हस्ताक्षर वाली जगह दिखाकर हस्ताक्षर करवाए। कुछ ही दिनों में लेखक को एक क्रेडिट कार्ड मिला। पूछताछ करने पर पता चला कि, उनका किसी विदेशी बँक से कॉंट्रेक्ट था। अपना लक्ष्य पूरा करवाने के लिए उन्होंने यह क्रेडिट कार्ड बनवाया था।


कलम का सिपाही


1. रूपक के आधार पर प्रेमचंद जी की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर :

प्रेमचंद जी के साहित्य में सामाजिक जीवन की विशालता, अभिव्यक्ति का खरापन, पात्रों की विविधता, सामाजिक अन्याय का घोर विरोध, मानवीय मूल्यों से मित्रता तथा संवेदना पाई जाती है। युग की चुनौतियों को सामाजिक धरातल पर उन्होंने स्वीकारा और नकारा भी।

प्रेमचंद जी का साहित्य लोगों को अन्याय से जूझने की शक्ति प्रदान करता है। उनका साहित्य समय की धड़कनों से जुड़ा सजग, आदर्शवादी है। ऐसा लगता है, आज भी वे जीवन से जुड़े हुए युगजीवी हैं और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं। उनके कहानी और नाटकों में व्याप्त माननीय संवेदना उनके साहित्य की विशेषता मानी जाती है।


2. पाठ के आधार पर ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं को रेखांकित कीजिए। उत्तर : प्रेमचंद जी स्वयं ग्रामीण माहौल में पैदा हुए, पले, गरीबी में जीवनयापन किया। उनके

अधिकांश उपन्यास और कहानियों में देहाती जीवन का ही चित्रण मिलता है। 'गोदान उपन्यास, 'कफन', 'ईदगाह, बूढ़ी काकी' आदि कहानियों में ग्रामीण जीवन का चित्रण मिलता है।

'प्रतिज्ञा', 'निर्मला', 'सेवासदन' में शहरी जीवन से जुड़ी समस्याओं का चित्रण मिलता है। इन उपन्यासों में हमें भारतीय नारी की समस्या का चित्रण मिलता है। निर्मला एक ऐसी स्त्री है जो परंपराओं, रुढ़ियों, धर्म और कर्मकांडों से जुड़ी हुई है। इस प्रकार ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं को रेखांकित किया है।


तत्सत


1. टिप्पणियाँ लिखिए -

(1) बड दादा

(2) सिंह

(3) बॉस

उत्तर :

(1) वड़ दादा : 'तत्सत' इस कहानी में एक घना जंगल है। इस जंगल में एक बड़ा पुराना बड़ का पेड़ है। उसे सब 'बड दादा' कहकर पुकारते हैं। बड़ दादा अंत्यंत शांत और संयमी है। वह सबसे स्नेह करता है। एक दिन बड़ दादा की छाँव में बैठे दो आद‌मियों ने कहा कि यह वन अत्यंत भयानक और घना है।

आदमी किस वन के बारे में बात कर रहे थे, यह जंगल वासी समझ नहीं पाए। वन किसे कहते है? वह कहाँ है? इसे जानने के लिए सब बेचैन थे। अनेक पेड़, प्राणियों के साथ बड़ दादा की चर्चा हुई। किसी को भी 'वन' के बारे में जानकारी नहीं थी। कुछ दिन बाद वही आदमी फिर दिखाई दिए।

बड़ ने उन्हें 'वन' के बारे में पूछा। आदमी ने बड़ के पेड़ पर चढ़कर ऊपरी हिस्से में खिले हुए नए पत्तों को आस-पास की दुनिया दिखाकर बड़ के कान में कुछ कहा। बड़ दादा को उस

वक्त पता चला कि 'वन' माने कोई जानवर या पेड़-पौधे नहीं बल्कि उन सबसे वन बना है। वन हम में है और हम वन में हैं इस परम सत्य का उसे पता चला। आखिर वही 'तत्सत' था।


(2) सिंह: इस कहानी का सिंह 'शक्ति' का प्रतीक है। सिंह पराक्रमी है। वन का राजा है। उसे अपनी शक्ति पर गर्व है। जब बड़ दादा तथा अन्य उसे 'वन' के बारे में पूछते हैं तब उसे पता चलता है कि 'वन' नामक कोई है? उस 'वन' को उसने कभी नहीं देखा था। सिंह उस वन को चुनौती देना चाहता है।

अगर उसका 'वन' से मुकाबला हो जाए तो उसे फाड़कर नष्ट करना चाहता है। 'वन' को नष्ट करने की भाषा के पीछे उसका अज्ञान है। वन के अस्तित्व पर उसे भरोसा नहीं है। खुद की शक्ति पर अहंकार करने वाले सिंह के शब्द और कृति से उसका बल दिखाई देता है। शक्ति, वीरता, बल और अहंकार का प्रतीक 'सिंह' है।


(3) वाँस : 'तत्सत' कहानी में गहन वन है जहाँ के पेड़-पौधों को तथा पशुओं को 'वन' नामक जानवर के बारे में पता नहीं है। परंतु सबको उसका डर था क्योंकि शिकारियों ने 'भयानक वन' की बात आपस में की थी। वन के सभी 'वन' नामक भयानक जानवर के बारे में चर्चा कर रहे थे।

तब बाँस भी उस चर्चा में सम्मिलित हुआ। वह थोड़ी सी हवा आते ही खड़खड़ करने लगता था। वह पोला था परंतु बहुत कुछ जानता था। वह घना नहीं था, सीधा ही सीधा था। इसीलिए झुकना नहीं जानता था। उसे लगता था कि हवा उसके भीतर के रिक्त में वन-वन-वन-वन कहती हुई घूमती रहती है।

वाग्मी वंश बाबू अर्थात् बाँस 'वन' नामक भयानक प्राणी के बारे में अधिक बता न सके।


2. तत्सत' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

'तत्सत' यह कहानी प्रतीकात्मक है। यहाँ वन ईश्वर का प्रतीक है और वन में रहने वाले सभी प्राणी, पशु-पक्षी, पेड़ पौधे उसके अंश है। 'वन' के अस्तित्व को लेकर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी,इनसान में चर्चा छिड़ जाती है। आदमी का कहना है कि, 'हम सब जहाँ है वहीं वन है। लेकिन पेड़-पौधे और पशु-पक्षी उसकी बात मानने को तैयार नहीं है। बड़ दादा की आदमी के साथ देर तक चर्चा होती है।

आखिर बड़ दादा को साक्षात्कार होता है और वह वन रूपी ईश्वर के अस्तित्व को मानने के लिए तैयार हो जाता है। बड़ दादा से मनुष्य ने जो कुछ कहा, मंत्र रूपी संदेश दिया तब मानो उसमें चैतन्य भर आया। उन्होंने खंड को कुल में देख लिया। उन्हें अपने चरमशीर्ष से कोई अनुभूति प्राप्त हुई।


महत्त्वाकांक्षा और लोभ'


1. प्रस्तुत निबंध में निहित मानवीय भावों से संबंधित विचार लिखिए।

उत्तर :

'महत्त्वाकांक्षा और लोभ' इस निबंध में लेखक श्री. पदुमलाल बख्शी जी ने महत्त्वाकांक्षा के साथ-साथ असंतोष, अति लालसा, स्वयं को शक्तिमान बनाने की उत्कट अभिलाषा तथा कृतघ्नता के दुष्परिणाम को प्रस्तुत किया है। जो सुलभता से प्राप्त होता है उसके प्रति अर्थात प्राप्य के प्रति विरक्ति का भाव तथा अप्राप्य की लालसा मनुष्य को किस तरह लोभ में फंसाती है इसे कहानी द्वारा स्पष्ट किया है।

मछुवा और मछुवी को मछली के वरदान से घर, धन, राजकीय वैभव प्राप्ति के साथ-साथ मछुवी रानी बनी और सेवा में नौकर-चाकर भी प्राप्त हुए। इतना सब-कुछ प्राप्त होने से जो मिला है, उससे संतुष्ट होना चाहिए था। पर मानवीय प्रवृत्ति ऐसी है कि जो कभी संतुष्ट रहने नहीं देती, जो अप्राप्य है उसे पाने का प्रयास करती रहती है। अति महत्त्वाकांक्षा ने सूर्य, चंद्र, मेघ को अपने वश में करने की लालसा ने उनका जीवन समाप्त किया।

मानवीय भावों को अपने वश में रखना सही है पर हम उसे अपने वश में रख नहीं पाते यही हकीकत है।


2. पाठ के आधार पर कृतघ्नता, असंतोष के संबंध में लेखक की धारणा लिखिए।

उत्तर :

पाठ की कहानी में देवी मछली की कृतघ्नता लेखक ने स्पष्ट की है। मछुवे ने देवी मछली की

मदद निस्वार्थ भाव से की थी।

पत्नी के कहने पर उसने कुछ याचना की थी और उसे पूरा करके देवी मछली ने मछुए की पत्नी में अभिलाषा पैदा की थी। परंतु उसके सामने मछुवे ने पत्नी की ऐसी इच्छा प्रकट की थी जो वह पूरा नहीं कर सकती थी तब उसने सारा वैभव, धन सबकुछ वापस ले लिया और गरीबी में रहने का शाप दे दिया।

वरदान का अंत इस प्रकार अभिशाप में परिणत हो गया। देवी होते हुए भी उसमें त्याग, प्रेम, कृतज्ञता, क्षमा, दया जैसी भावनाएँ नहीं थी। वह कृतघ्न थी जो एक देवी को शोभा नहीं देता।

मछुवे की पत्नी में जो असंतोष था वह मानवी स्वभाव है। क्योंकि जब तक मनोवांछित फल मिलता नहीं तब तक उसे पाने के लिए मन लालायित रहता है परंतु जब वह वस्तु प्राप्त हो जाती है तब हमें दूसरी उससे भी बड़ी और महत्त्वपूर्ण वस्तु प्राप्त करने की इच्छा जाग जाती है और असंतोष की भावना मन में बनी रहती है। मछली ने पहले घर माँगा था। फिर खाने-पीने की तकलीफ है इसलिए धन माँगा था। लालसा बढ़ जाने पर राज वैभव माँगा था।

उसके पास महल, बाग, नौकर-चाकर आ जाने पर उसने सूर्य, चंद्र, मेघ आदि पर हुक्म करने की इच्छा व्यक्त की थी। अति लालसा और असंतोष के कारण ही जो कुछ उसने पाया था उसे खोना पड़ा था।

जो मछुवा-मछुवी वर्तमान में संतोष से जी रहे थे, टूटी-फूटी झोपडी में भी संतुष्ट थे उनमें असंतोष के भाव पैदा होने के कारण ही राज-वैभव भी उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाया। मन की अनंत इच्छाओं का परिणाम ऐसा ही भयानक होता है यही लेखक का कहना है।


भारती का सपूत


1. भारतेंदु ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया.... पाठ के आधार पर

बताइए।

उत्तर :

भारतेंदु जी हरिश्चंद्र जी का जन्म उच्च कुल में हुआ था। भारतेंदु जी के जन्म के समय उच्च वर्गों का समाज पर बहुत बड़ा असर था। उच्च कुलों का ही सम्मान था। यहाँ तक की देश की सामाजिक सत्ता उस वक्त देश के उच्च कुल के ही हाथ में थी।

परिस्थिति यह थी कि उस वक्त समाज वर्गों में बॅट गया था। निम्न वर्ग के लोगों के लिए किसी प्रकार के कोई भी अधिकार नहीं थे। वे शिक्षा से काफी दूर थे, परिणामवश निम्न वर्ग के लोगों में अज्ञान, अंधविश्वास, कुरीति, कुपरंपरा, जिससे निर्माण होनेवाला दारिद्रय काफी बड़ी मात्रा में नजर आता था।

भारतेंदु जी का जन्म भले ही उच्च कुल में क्यों न हुआ पर बचपन से उनके मन में निम्नवर्ग के प्रति आदर था। सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए भारतेंदु जी ने हिंदी स्कूलों का निर्माण किया जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, संस्कार, भारतीय भाषा को सिखाने का प्रयास किया।

भारतेंदु जी अपने कुल से सम्मानित न होकर उनके पास जो प्रतिभा थी उनसे सम्मानित व्यक्ति बने थे। साथ ही साथ निम्न वर्ग के लिए उन्होंने जो काम किया यह उसका परिचायक है।

भारतेंदु जी का साहित्य, उनकी सामाजिक सेवा का कार्य, पत्रकारिता के माध्यम से लोगों को जगाने का काम, अंग्रेजी स्कूलों से निर्माण होने वाले कालेसाहब जो अपनों पर ही हुकूमत करते थे, इनका विरोध किया। उनके कार्य इस बात का परिचय देते हैं कि भारतेंदु जी ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया है।

देश, धर्म, साहित्य, दारिद्रय मोचन, अपमानिता नारी के उद्धार के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।


2. भारती का सपूत के आधार पर भारतेंदु की उदार प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए। उत्तर : 'भारती का सपूत' जीवनीपरक उपन्यास है। भारतेंदू जी के जीवन और कार्य को आने वाली पीढ़ी के सामने रखना लेखक का उद्देश्य है। प्रस्तुत पाठ से भारतेंदु जी की उदार प्रवृत्ति स्पष्ट नजर आती है। भारतेंदु जी भले ही उच्च कुल में पैदा हुए हो पर उन्होंने अपना पूर्ण जीवन सामान्य लोगों के लिए बिताया है। साहित्य के क्षेत्र में हिंदी गद्य का निर्माण करके हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा बनाने का काम किया।

अंग्रेजी और हिंदी स्कूल खोलकर भारतेंदु जी ने निम्न वर्ग के अज्ञान, अंधश्रद्धा और कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। स्कूल में आने वाले छात्रों के लिए वह बिना शुल्क लिए पढ़ाते थे। साथ-ही-साथ छात्रों को किताबें और कलम मुफ्त में देते थे। इतना ही नहीं छात्रों के लिए खाना भी देते थे।

यह उनकी उदार प्रवृत्ति का उदाहरण है। अनेक प्रकार की पत्रिकाओं से समाज को जगाकर लोगों का दारिद्रद्य दूर किया। शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा, पत्रकारिता आदि सभी क्षेत्रों से भारतेंदु जी ने जन मानस के लिए जो कार्य किया है वह सब उनकी उदार प्रवृत्ति का परिचायक है।


नुक्कड़ नाटक


1. 'मौसम' नुक्कड़ नाटक में वर्णित समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर :

अरविंद गौड़ लिखित 'मौसम' इस नुक्कड़ नाटक में मानव जीवन से संबंधित विभिन्न सामयिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है। मनुष्य भौतिक विकास के नाम पर प्रकृति 

छेड़छाड़ कर रहा है, इससे ऋतु चक्र में अनियमितता आ गई है। कहीं धुआँधार बारिश तो कहीं बारिश की कमी।

मनुष्य पानी की प्लास्टिक बोतलें, प्लास्टिक थालियों, अन्य चीजें रास्ते पर फेंकता है जो नाले में अटक जाती हैं। नाले की निकासी रुकने से जरा-सी भी बारिश के बाद पानी भर जाता है। कारखानों का मैला, दूषित पानी नदी में छोड़ने से पानी दूषित हो जाता है।

नदी में रहने वाले जीव जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में है। कीटकनाशकों के उपयोग से जमीन बरबाद हो रही है। इस प्रकार पानी का प्रदूषण, पानी की कमी, जमीन का प्रदूषण, मौसम की अनियमितता, जीव जंतुओं का विनाश, गरीबों पर होने वाला परिणाम इन अनेक समस्याओं का विविध दृश्यों के माध्यम से वर्णन किया गया है।


2. 'विकास का सीधा असर पड़ता है लोगों की जिंदगी पर', इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्त्तर :

आधुनिक युग यंत्र युग कहलाता है। यंत्रयुग में रोज नए यंत्र, मशीन और इन मशीनों को चलाने वाले कारखाने, निर्माण होते हैं। इन कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को स्कीन कैंसर जैसी अन्य अनेक बीमारियों से जूझना पड़ता है। कारखानों से निकलने वाला मैला रसायनिक पानी नदी में छोड़ा जाता है। इस कारण नदी में रहने वाली मछलियाँ, अन्य जीवजंतु मर जाते हैं। इन मछलियों को पकड़कर अपना जीवन निर्वाह करने वाले मछुआरों पर मछली न मिलने से भूखा मरने की नौबत आती है।

खेती में कीटकनाशकों के उपयोग से खेती बंजर हो रही है। कीटकनाशकों का उपयोग करके खेती में आई फसल, फल, सब्जियाँ खाकर भी लोगों को रोज नई बीमारी का सामना करना पड़ता है।

वाहन, कारखाने, घर, ऑफिस में लगाए गए ए.सी., फ्रीज आदि से निकलने वाली गैस ओजोन गैस की परत में छेद करता है। इससे बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से पूरा जग परेशान है।

किसान, मछुवारे, आदिवासी जैसे सामान्य जन जिनकी जिंदगी प्रकृति पर निर्भर है तथा मजदूर जो यंत्रयुग का शिकार है इन सबकी जिंदगी के विकास पर सीधा बुरा असर पड़ रहा है।


3. 'रक्तदान करना हमारा उत्तरदायित्व हैं', नाटक के आधार पर लिखिए।

उत्तर :

अरविंद गौड़ लिखित नुक्कड़ नाटक 'अनमोल जिंदगी' में रक्तदान का महत्त्व बताया है। रक्तदान न करने के पीछे लोगों के मन में जो गलतफहमियाँ हैं उन्हें दूर करते हुए रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित किया है। समाज में हजारों-लाखों मनुष्यों की मृत्यु सिर्फ उन्हें समय पर उचित रक्त न मिलने से होती है।

रास्ते पर वाहन चलाते समय एक्सीडेंट होता है, किसी को गंभीर बीमारी में खून की जरूरत होती है तो कभी किसी नारी को प्रसव के दौरान खून के अति बहाव के कारण रक्त की जरूरत होती है। इन सभी प्रसंगो में समय पर उचित रक्त प्राप्त हो जाए तो इन लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। इनकी जिंदगी को बचाने का परम कल्याण का काम हमारे हाथ से हो सकता है अगर हम रक्तदान करेंगे तो।

अन्य किसी भी दान से यह दान महत्त्वपूर्ण है। रक्तदान ही जीवनदान है, अतः रक्तदान करना हमारा उत्तरदायित्व है। हर व्यक्ति अगर रक्तदान करेंगे तो हमें जाने-अनजाने में ही जरूरतमंदों की सेवा का पुण्य मिलेगा। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम रक्तदान करें। रक्तदान ही मानवता की सेवा है।


प्रश्न 4.


रक्तदान के लिए सामाजिक जागृति की आवश्यकता, नाटक के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : आज हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं। हर क्षेत्र में उन्नति कर रहे हैं। पुराने काल में लोग स्कूल- कॉलेज में नहीं जाते थे। अनपढ़ लोगों के मन में कई अंधविश्वास थे। परंतु आज पढ़े-लिखे लोगों में भी काफी अंधविश्वास मौजूद हैं।

रक्तदान को लेकर भी समाज में काफी गलतफहमियों फैली हुई हैं। इन्हें दूर करने के लिए सामाजिक जागृति की आवश्यकता है। लोग ऐसा मानते हैं कि रक्तदान करने से कमजोरी बढ़ेगी, हाइट-बॉड़ी कम हो जाएगी।

लड़कियों को तो रक्तदान ही नहीं करना चाहिए। टॅटू निकालने के बाद रक्तदान नहीं करना चाहिए, ये सब गलतफहमियाँ होने से लोग रक्तदान करने से कतराते हैं। कुछ लोगों को भपले खालताल पर इलला नगर्न होता है कि ते लोना भपला भाटी ग्वल किसी त्यो को देने का विचार भी नहीं करते।

वास्तविक रूप से खून का शाही खून, सामान्य खून ऐसे कोई प्रकार नहीं होते हैं। खून में कोई खानदान, जातिपाति, धर्म-वंश, देश-विदेश का भेदभाव नहीं होता है। दुनिया के किसी भी कोने का कोई भी आदमी सिर्फ ब्लड ग्रुप मिलने पर रक्त पाकर जीवनदान पा सकता है।

रक्तदान देने से हमारे शरीर पर कोई भी बुरा असर नहीं होता है। 'रक्तदान ही मानवता का दूसरा नाम है यह जागरूकता लोगों में निर्माण करना यह भी एक बड़ा सामाजिक कार्य है।


व्यावहारिक हिंदी


हिंदी में उज्जवल भविष्य की संभावनाएं


1. मनोरंजन के क्षेत्र में हिंदी भाषा के माध्यम से रोजगार की संभावनाएँ लिखिए।

उत्तर :

आधुनिक जमाने में मनोरंजन एक उ‌द्योग के रूप में उभरकर आया है। टी. वी. ने असंख्य कलाकारों, संगीतकारों, गायकों के लिए रोजगार का महा‌द्वार खोला है। इसके अलावा हिंदी रचनाकारों, संवाद-लेखकों, पटकथा लेखकों और गीतकारों के लिए भी नए-नए अवसर प्राप्त हो रहे हैं।

कई प्रसिद्ध धारावाहिकों के अनुवाद में भी रोजगार की संभावनाएँ हैं। कार्टून फिल्मों में भी डबिंग (पार्श्व आवाज) के लिए अनेक संभावनाएँ हैं।

फिल्म क्षेत्र में पटकथा लेखन, संवाद लेखन, गीत लेखन, कलाकारों के लिए हिंदी का सही उच्चारण सिखाने के लिए प्रशिक्षक के रूप में रोजगार की संभावनाएँ हैं।

रेडियो एक पुराना माध्यम है। रेडियो में रूपक, नाटक, धारावाहिक, समाचार-लेखन, भाषण, वाचन इन क्षेत्रों में अवसर प्राप्त हैं। इसके अलावा रेडियो जॉकी का काम भी आज के जमाने की माँग है।

प्रकाशन क्षेत्र में भी पुस्तकों के लिए मुद्रित शोधन, समाचार पत्रों में संपादक, पत्रकार, अनुवादक, स्तंभ लेखक इन जैसे विविध रोजगार को पाने के लिए हिंदी भाषा पर अधिकार होना जरूरी है।

प्रकाशन क्षेत्र में भी पुस्तकों के लिए मुद्रित शोधन, समाचार पत्रों में संपादक, पत्रकार, अनुवादक, स्तंभ लेखक इन जैसे विविध रोजगार को पाने के लिए हिंदी भाषा पर अधिकार होना जरूरी है।


2. 'अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी रोजगार की भाषा बनती जा रही है', इसपर अपने विचार लिखिए।

उत्तर :

भूमंडलीकरण के इस युग में आज दुनिया बिल्कुल नजदीक आ गई है। भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में अनेक विदेशी कंपनियों व्यापार के लिए इच्छुक हैं। यही कारण है कि दुनिया के 127 देशों के विश्ववि‌द्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।

इन देशो में हिंदी अध्यापक का कार्य करना एक सुअवसर है। दुनिया के लगभग सभी देशों में हमारे दूतावास हैं। इसी तरह दुनिया के तमाम देशों के दूतावास हमारे देश में भी हैं। इनमें से कई दूतावासों में अब हिंदी विभाग की स्थापना हो चुकी है। इस विभाग में हिंदी अधिकारी, हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक जैसे पद उपलब्ध होते हैं। इन विभागो द्वारा पत्राचार, समाचार, रिपोर्ट हिंदी में भेजने के लिए हिंदी विशेषज्ञों का विशेष महत्त्व है।

अन्य देशों के पर्यटक हमारे देश में आते हैं। बहुभाषी लोगों के लिए 'टुरिस्ट गाइड' का काम यह एक नया रोजगार है। विदेशी कंपनियों की वस्तुएँ भारत में बेचने के लिए भी मैनेजर से लेकर विक्रेता तक अनेक प्रकार के पर्दो पर रोजगार पाना समय की माँग है।


समाचार जान से जनहित तक


1. टेलीविजन के लिए समाचार वाचन की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर :

टेलीविजन के लिए समाचार वाचन की विशेषताएँ टेलीविजन दृश्य मिडिया है। समाचार वाचक के लिए टेलीप्राम्प्टर की सुविधा होती है। इसीलिए हमें ऐसा आभास होता है कि समाचार वाचक हमसे बातचीत कर रहा है। समाचार को प्रस्तुति में प्रोड्यूसर, इंजीनियर, कैमरामैन, फ्लोर मैनेजर, वीडियो संपादक, ग्राफिक आर्टिस्ट, मेकअप आर्टिस्ट आदि टीम की तरह मिलकर काम करते हैं।

समचार वाचक समाचार वाचन करते समय ऐंकर की भूमिका भी निभाता है, किसी का साक्षात्कार भी लेता है, चैनल की परिचर्चा में सवाल भी करता है। इसके बीच में वह तत्काल घटी घटनाओं को 'बेक्रींग न्यूज के रूप में शामिल कर लेता है।

समाचार वाचन में समाचार वाचक के प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ-साथ सुयोग्य आवाज, उच्चारण की शुद्धता, भाषा का ज्ञान, शब्दों का उतार-चढ़ाव एवं भाषा का प्रवाहमयी होना भी जरूरी है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के पद की गरिमा का ध्यान रखना भी जरूरी होता है। ऐसी कोई बात न पढ़ी जाए जो किसी धर्म, जाति या वर्ग की भावना को चोट पहुँचाए।

समाचार वाचन राष्ट्रहित, एकता और अखंडता को ध्यान में रखकर होना चाहिए।


2. रेडियो और टेलीविजन के लिए समाचार प्राप्त करने के साधन लिखिए।

उत्तर :

रेडियो और टेलीविजन के लिए समाचार प्राप्त करने के साधन समाचार एजेंसियाँ, संवाददाता, प्रेस विज्ञप्तियाँ, भेंटवार्ताएँ, साक्षात्कार, क्षेत्रीय जनसंपर्क अधिकारी, राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता, मोबाइल पर रिकॉर्ड की गई जानकारी आदि साधनों द्वारा समाचार प्राप्त होते हैं।

सारे विश्व में समाचारों का संकलन और प्रेषित करने का काम मुख्यतः समाचार एजेंसियाँ करती हैं। समाचार एजेंसियाँ के क्षेत्रीय ब्यूरो समाचार को टेलीप्रिंटर द्वारा कार्यालय तक पहुंचाते हैं। उन्हें पुनर्संपादित कर समाचार रेडियो और टेलीविजन कक्ष में टेलीप्रिंटर द्वारा भेजते हैं।

भारत में मुख्यतः विदेशी और भारतीय समाचार एजेंसियों में रायटर, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पी.टी.आई), यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यू.एन.आई), यूनिवार्ता एजेंसियाँ समाचार उपलब्ध कराती हैं। केंद्र सरकार की खबरें, पत्र, सूचना कार्यालय द्वारा और राज्य सरकार की खबरों की सूचनाएँ जन संपर्क विभाग की प्रेस विज्ञप्तियों से मिलती हैं।

इनके अलावा सार्वजनिक प्रतिष्ठान, शोध और निजी संस्थानों के जनसंपर्क अधिकारी और प्रेस के संवाददाता भी समाचार उपलब्ध कराते हैं।


3. समाचार के महत्त्वपूर्ण पक्ष स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

समाचार के महत्त्वपूर्ण पक्ष: समाचार की भाषा सरल और सहज होनी चाहिए। समाचार के वाक्य छोटे-छोटे हों। प्रदेश और क्षेत्र की भाषा की गरिमा के अनुकूल वाक्य हों। समाचार में ऐसी बात न हो जिससे धर्म, जाति या वर्ग की भावना को चोट पहुँचे। समाचार की प्रस्तुति राष्ट्रहित, एकता और अखंडता को ध्यान में रखकर होनी चाहिए।

समाचार के क्षेत्र में जनहित एक मशाल है और पत्रकार उसकी किरण जिसके सहारे राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सद्भाव और भाइचारे को प्रकाशमान करना चाहिए। समाचार का दायरा बहुत बड़ा है। राजनीतिक, संसद, खेल, विकास, व्यापार, विज्ञान, कृषि, रोजगार, स्वास्थ्य आदि से संबंधित समाचार प्रस्तुत होते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के पदों की गरिमा को ध्यान में रखकर ही समाचार प्रस्तुत करने चाहिए।


रेडियो जॉकी


1. आर.जे. के लिए आवश्यक गुण लिखिए।

उत्तर :

स्नातक पदवी प्राप्त होने पर वह स्टाफ सिलेक्शन कमिशन तथा ऑल इंडिया रेडियो दवारा ली जाने वाली परीक्षा दे सकता है।

और उसमें उत्तीर्ण होने पर प्रत्यक्ष साक्षात्कार द्वारा उम्मी‌द्वार का चयन होता है। उसका भाषा पर प्रभुत्व होना चाहिए। उसे देश-विदेश की जानकारी रखनी चाहिए। उसमें नित नई रची जाने वाली रचनाओं को पढ़ने की ललक होनी चाहिए। आवाज में उतार-चढ़ाव, वाणी में नम्रता तथा समय की पाबंदी आदि गुण उसमें होने चाहिए। उसे अनुवाद करने का जान भी होना चाहिए। उसे अपने कान और आँखें निरंतर खुली रखनी चाहिए।

उसे अपने उच्चारण पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने क्षेत्र का सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक ज्ञान भी उसे अवश्य होना चाहिए। साक्षात्कार लेने की कुशलता भी उसमें अवश्य होनी चाहिए। श्रोता द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर उसके पास होने चाहिए।

निराश श्रोता का मनोबल बढ़ाने की कला उसे अवगत होनी चाहिए। उसकी भाषा सहज, सरल, संतुलित, रोचक तथा प्रवाहमयी होनी चाहिए जो श्रोताओं की समझ में सानी से आए और श्रोताओं को ज्ञान भी मिले और श्रोताओं का मनोरंजन भी हो।

तथा प्रवाहमयी होनी चाहिए जो श्रोताओं की समझ में सानी से आए और श्रोताओं को ज्ञान भी मिले और श्रोताओं का मनोरंजन भी हो।


2. सामाजिक सजगता निर्माण करने में आर.जे. का योगदान अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तर :

सामाजिक जागरुकता फैलाने में आर. जे. महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। क्योंकि आर. जे. का काम समाज के हर घटक से जुड़ा हुआ है। कार्यक्रम के दौरान वह पर्यावरण दिवस, पोलियो अभियान, जल साक्षरता, बाल मजदूरी, दहेज समस्या, कन्या साक्षरता, विश्व पुस्तक दिवस, किसान और खेती का महत्त्व, व्यसन से मुक्ति, मतदान जनजागृति आदि विषयों पर चर्चा करते हुए मनोरंजनात्मक ढंग से लोगों के बीच में जागरूकता फैलाने का काम करता है।

उदाहरण के लिए आर. जे. अनुराग पांडेय जी की बातों को सुनकर कितने ही युवाओं ने उत्साह से मतदान किया था और कितने ही लोग व्यसनमुक्त भी हुए। इस प्रकार आर. जे. समाज में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है।

3. आर.जे. के महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर :

रेडियो जन-जन का माध्यम है जो लोगों के मन को छूता है। आर. जे. अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति द्वारा जनमानस को हौसला देता है, नई-नई बातें बताता है। वह टेलीफोन के माध्यम से श्रोताओं से बातचीत करता है। श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देता है तो कभी निराश श्रोता का मनोबल बढ़ाने का कार्य करता है। कभी मेहमानों या अतिथियों का परिचय कराता है, किसी परिचर्चा में हिस्सा लेता है।

खास लोगों का विशेष अवसर पर साक्षात्कार लेते हुए कार्यक्रम की प्रस्तुति करता है। अपने कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण दिवस, पोलियो अभियान, जल साक्षरता जैसे कई विषयों पर चर्चा करते हुए मनोरंजनात्मक ढंग से जनजागृति लाता है।

अपने कार्यक्रम के दौरान दो गीतों के बीच कड़ी बनाने का कार्य करता है। वह श्रोताओं से संवाद करता है। समाज में जागरुकता फैलाता है और परिवर्तन लाता है।


ई-अध्ययन-नई दृष्टि


1. विद्यार्थी जीवन में ई-अध्ययन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : आज तक विद्यार्थी केवल हाथ में पुस्तक लेकर ही ज्ञान प्राप्त कर सकते थे परंतु ई- अध्ययन शिक्षा-क्षेत्र में कई सकारात्मक बदलाव ला सकता है। आज इंटरनेट पर कई सारी

वेबसाइट्स से ज्ञान के दरवाजे खुले हैं। एक बटन दबाते ही ज्ञान का भंडार छात्र के सामने बैठे-बिठाए प्रस्तुत हो जाता है।

कंप्यूटर विद्यार्थी के लिए ज्ञान का स्त्रोत है जिसके सहारे पढ़ाई हो सकती है। दृक्-श्राव्य माध्यम से उसकी पढ़ाई रोचक बन जाती है। मनोरंजन और ज्ञान का सुंदर समन्वय ई- अध्ययन में होता है।

आज का युग प्रतियोगिता का युग है। विद्यार्थियों को कई सारी प्रतियोगिताएँ, परीक्षा की तैयारियों करनी होती हैं और इनके लिए ई-अध्ययन एक वरदान है। हर विषय का ज्ञान, तैयारियाँ करनी होती हैं और इनके लिए ई-अध्ययन एक वरदान है। हर विषय का ज्ञान, सामान्य ज्ञान, खेल-कूद, संगीत, राजनीति आदि की जानकारी भी छात्र ई-अध्ययन द्वारा प्राप्त कर स्वयं को अद्यतन रख सकता है।

समय, श्रम और अर्थिक बचत भी बड़े पैमाने पर होती है। ज्ञान के साथ-साथ करियर का अवसर भी प्राप्त हो सकता है। सचमुच ई-अध्ययन का वि‌द्यार्थी जीवन में बड़ा महत्त्व है।


2. ई-ग्रंथालय की जानकारी लिखिए।

उत्तर :

आज इंटरनेट पर ई-ग्रंथालय वेबसाइट उपलब्ध है। यह ग्रंथालय शुल्क सहित तथा निःशुल्क दोनों तरीके से उपलब्ध है। ऐसे ग्रंथालयों में ई-पुस्तकें, ई-वीडियो, वार्तापट आदि द्वारा जान उपलब्ध होता है। यह सुविधा हर दिन, हर समय उपलब्ध होती है यानि समय का बंधन नहीं होता।

सबसे बड़ी बात यह है कि यहाँ केवल हमारे देश के लेखकों का ही साहित्य नहीं तो विदेशी लेखकों के साहित्य को पढ़ने का लाभ उठा सकते हैं।

आज कई सारे प्रकाशक पुस्तक बनते ही वेबसाइट पर ई-पुस्तक द्वारा उपलब्ध करवाते हैं। ई-पुस्तक वापस लौटाने की जरूरत नहीं होती। पुस्तक को संभालकर रखने, गुम हो जाने या फट जाने की संभावना भी नहीं होती है।

मनचाहे पुस्तक को अपने कंप्यूटर में, मोबाइल में या टैब में संकलित कर सुरक्षित रख सकते हैं।


3. 'आज के विद्यार्थी अध्ययन के लिए कंप्यूटर पर निर्भर हैं- पाठ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर :

वर्तमानकालीन विद्यार्थी मोबाइल, इंटरनेट आदि आधुनिक तकनीक के अधीन हो गए हैं। हर क्षेत्र में तंत्रज्ञान के माध्यम से क्रांति हुई है। सूचना एवं तकनीकी क्रांति से शिक्षा क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है। अध्ययन-अध्यापन में ई-अध्ययन ने नई दृष्टि प्रदान की है।

आज से पहले विद्यार्थी केवल हाथ में पुस्तक लेकर ज्ञान प्राप्त कर सकते थे, परंतु आज एक बटन दबाते ही ज्ञान का भंडार उसके सामने बैठे बिठाए प्रस्तुत होता है। आज इंटरनेट की कई सारी वेबसाइट्स से जान के दरवाजे खुले हैं। कंप्यूटर हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गया है।

आज के विद्यार्थी इस ज्ञान देने वाले कंप्यूटर को ज्ञान के स्त्रोत के रूप में देख रहे हैं। उसके सहारे उनकी बहुत सारी पढ़ाई आसानी से हो जाती है।

कठिन से कठिन जानकारी कंप्यूटर द्वारा विद्यार्थी तक पहुंच रही है। परीक्षा की तैयारी करनी हो या प्रतियोगिता के लिए तैयार होना हो कंप्यूटर पर उपलब्ध जान वि‌द्यार्थी के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।

समय, श्रम और धन की बड़े पैमाने पर बचत होना भी अन्य लाभ है जो वि‌द्यार्थी बखूबी उठाते हैं इसीलिए अपने अध्ययन के लिए कंप्यूटर पर निर्भर होते हैं।


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